शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

prawanchna

टूटी फूटी झोपड़ी में pरसाव वेदना से तड़पती हुई बुधिया जब तड़प तड़प कर दम तोड़ देती है तो ऐसा लगता है मानो प्रेमचंद भारतीय समाज के उस प्रवंचना को बेनकाब कर देते हैं की यत्र नार्यस्तु pउज्यानते रमन्ते तत्र देवता कहकर नारियां उपने आदर्श का उदघोष करती हैं

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