रविवार, 3 अक्तूबर 2010

आखिर क्यूं ऐसी मीडिया?

पहले राजनीति का अपराधीकरण हुआ करता था, आजकल अपराधियों का राजनीतिकरण हो गया है| पहले राजनीतिज्ञ अपराधियों का इस्तेमाल करते थे और सत्ता हथिया लेते थे| अपराधियों को लगने लगा की सब काम वे ही करते हैं और मलाई राजनीतिज्ञ खाते हैं तो उन्होंने सोचा की क्यूं नहीं सीधे राजनीति में हिसा लिया जाए| और देखते ही देखते राजनीति में इन्ही का दबदबा हो गया| तो यह बेधड़क होकर कहा जा सकता है की देश में अपराधियों का पूरी तरह राजनीतिकरण हो गया है, मतलब अपराधी ही सत्ता के शिखर पर विराजमान हैं| मुख्यधारा की मीडिया भी उन्हीं के इशारे पर उठती, बैठती तथा सभी तरह के राग गाती है| पूंजीपतियों के नियंत्रण में लोकतंत्र के नाम पर उन्हीं का शासन चल रहा है| वैकल्पिक मीडिया का काम इसी परिपेछ्य में देखा जा सकता है|

1 टिप्पणी:

  1. महत्वपूर्ण बात यह है कि अब मीडिया क्या करे. वर्तमान मीडिया धीरे-धीरे लोकतन्त्र की न होकर राजतन्त्र की ओर मुखातिब होती जा रही है. भारत की आजादी के पहले मीडिया का लक्ष्य आमजन को स्वतन्त्रता आन्दोलन के प्रति जागरूक करना था. उसके बाद भारत के औद्योगिक विकास में समाचार पत्रों ने सहयोग किया. अब २१वीं सदी के ज्यादातर अखबार खुद का विकास करने में लगे हैं. अखबार मालिकों को अब भाषा और अभियक्ति नहीं मार्केटिंग चाहिये. उन्होंने यह प्रमाणित कर दिया है कि अब अखबार स्टोरी से नहीं स्कीम से बिकते हैं. ऐसे में पत्रकार क्या करे, जिसकी जरूरतें भी अब न्यूनतम नहीं रहीं.
    २०वीं सदी में राजनीतिज्ञ मीडिया के पीछे घुमते थे, अब मीडिया राजनीतिज्ञों के पीछे. दूसरे शब्दों में २१वीं सदी का मीडिया अपराधियों के साथ है.

    जवाब देंहटाएं