रविवार, 3 अक्तूबर 2010

आखिर क्यूं ऐसी मीडिया?

पहले राजनीति का अपराधीकरण हुआ करता था, आजकल अपराधियों का राजनीतिकरण हो गया है| पहले राजनीतिज्ञ अपराधियों का इस्तेमाल करते थे और सत्ता हथिया लेते थे| अपराधियों को लगने लगा की सब काम वे ही करते हैं और मलाई राजनीतिज्ञ खाते हैं तो उन्होंने सोचा की क्यूं नहीं सीधे राजनीति में हिसा लिया जाए| और देखते ही देखते राजनीति में इन्ही का दबदबा हो गया| तो यह बेधड़क होकर कहा जा सकता है की देश में अपराधियों का पूरी तरह राजनीतिकरण हो गया है, मतलब अपराधी ही सत्ता के शिखर पर विराजमान हैं| मुख्यधारा की मीडिया भी उन्हीं के इशारे पर उठती, बैठती तथा सभी तरह के राग गाती है| पूंजीपतियों के नियंत्रण में लोकतंत्र के नाम पर उन्हीं का शासन चल रहा है| वैकल्पिक मीडिया का काम इसी परिपेछ्य में देखा जा सकता है|

चपाती|

एक चपाती
प्यार लूटाती
गीत सुनाती
देखो आती

एक चपाती
नाच नचाती
रंग उड़ाती
देखो आती

एक चपाती
झंडा गाती
तोप झुकाती
देखो आती

एक चपाती
गद्दर मचाती
बिगुल बजाती
देखो आती

एक चपाती
क्रांति सिखाती
स्वप्न दिखाती
देखो आती
- उद्भ्रांत|

सात जन्मों की कमाई

लोग कहते हैं की बेटी पराई होती है
यह सुन सुनकर बेटी मुरझाई होती है
पर मैं कहती हूँ की बेटी ही घर की गरिमा है
और बेटा और बेटी दोनों हैं घर की शान
फिर दुनियावाले क्यों होते हो परेशान
क्या नहीं सुनी वीरकथा रानी लक्ष्मीबाई की
क्या याद नहीं दुर्गा इंदिरा का कमाल
जिसने दे दी एक नई मिशाल
फिर मन में है क्यूं शंका
की बेटी पराई होती है
बेटी तो सात जन्मों की कमाई होतीहै|
-अदिति की चहेती कविता

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

देश क्या आज़ाद है|

सौ में सत्तर आदमी जब आज भी नाबाद है
दिल पर रखकर हाथ कहिये देश क्या आज़ाद है?

भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की

prawanchna

टूटी फूटी झोपड़ी में pरसाव वेदना से तड़पती हुई बुधिया जब तड़प तड़प कर दम तोड़ देती है तो ऐसा लगता है मानो प्रेमचंद भारतीय समाज के उस प्रवंचना को बेनकाब कर देते हैं की यत्र नार्यस्तु pउज्यानते रमन्ते तत्र देवता कहकर नारियां उपने आदर्श का उदघोष करती हैं

बुधवार, 29 सितंबर 2010

phasal


हल की तरह
कुदाल की तरह
या खुरपी की तरह
पकड़ भी लूं कलम को
तो भी फसल काटने को
मिलेगी नहीं हमको

हम तो ज़मीन ही तैयार कर पाएंगे
क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे
हरा-भरा वही करेंगे मेरे श्रम को
सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को

कल तब फसल उगेगी
न रहने पर भी हवा से इठलायेगी
तब मेरी आत्मा सुनहरी धुप बन बरसेगी
जिन्होंने बीज बोया था उन्ही के चरण पसरेगी

काटेंगे उसे जो फिर वही उसे बोयेंगे
हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे
_सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

दुर्दशा

हम में से अधिकांश ने अपनी लेखनी को रंडी बना दिया है, जो पैसे के लिए किसी के भी साथ सो जाती है सत्ता इस लेखनी से बलात्कार कर लेती है और हम रिपोर्ट तक नहीं करते

तो जेल में होते
इस व्यवस्था में कोई भी अकेला नहीं खाता सब मिलकर खाते हैं- खानेवाले भी और पकड्नेवाले भी इसलिए वास्तविक बड़े भ्रष्टाचारी कभी नहीं पकड़े जायेंगे पकड़े जाने लगें, तो इस देश के तीन चौथाई मंत्री, सांसद और विधायक जेल में होंगे भला, लोकतंत्र का ऐसा नाश कौन देशभक्त करना चाहेगा?