रविवार, 20 नवंबर 2011

kabja kar lo

अमीरी और गरीबी के तुलनात्मक अध्यन से यह साफ हो गया है की एक तरफ मुठी भर लोग तहां खाते खाते नाहिया अघा रहें हैं वहीँ दूसरी तरफ भूख से मरनेवालों की संख्या रोज़ बढ़  रही है. दिनकर ने तो सालों पहले कह दिया था-स्वानों को मिलता दूध वस्त्र भूखे बचे अकुलाते हैं, माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जारे की रात बिताते हैं. पूरी दुनिया में शाषक वर्गों के खिलाफ जोरदार कब्ज़ा को आन्दोलन चल रहा है. भारत में भी इसकी गूंज सुनायी देनी चाहिए. इजारेदार तथा  पूंजीपति घरानों के दफ्तरों औए घरों को घेर कर उन्हें कब्ज़ा कर लेने के मुहीम जरूरी  है. हालाँकि यह आसान नहीं है. खुनी क्रांति को अंजाम देना पड़ेगा. आईये शुरूआत  तो करें.

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